आंतरिक शक्तियों के जागरण के लिए मौन साधना का महत्व
आध्यात्मिक परंपरा में मौन को एक महत्वपूर्ण साधना के रूप में माना गया है। यह न केवल बाहरी वाणी पर नियंत्रण रखता है, बल्कि मन की शांति और आंतरिक ऊर्जा को भी जागृत करता है। मौन का अभ्यास मनुष्य को अपने अंत:करण की शुद्धि, मानसिक संतुलन और आत्म-ज्ञान की ओर अग्रसर करता है।
Img Banner
profile
Sanjay Purohit
Created AT: 12 मई 2025
207
0
...

हमारी समृद्ध आध्यात्मिक विरासत में आर्ष ग्रंथों एवं दार्शनिक ग्रंथों के माध्यम से मनुष्य जीवन को आनंदमय बनाने के लिए अनेक प्रकार की पद्धतियों का वर्णन किया गया है। सभी क्रियाओं का मूल उद्देश्य मनुष्य के अंत:करण को सात्विकता प्रदान करना है, जिससे वह प्रभु-उपासना के पथ पर अग्रसर हो सके। मौन भी एक आंतरिक साधना है, जो मनुष्य को आध्यात्मिक पथ की ओर ले जाती है। मौन को हमारे दार्शनिक ग्रंथों में तप की श्रेणी में रखा गया है। इसका सामान्य अर्थ है ‘चुप रहना’, परंतु साधना के मार्ग पर मौन का अर्थ बहुत व्यापक माना गया है। वाणी को विराम देकर मन से निरंतर प्रभु का चिंतन-मनन करना ही सच्चा मौन-व्रत है।

मानव-मन को अत्यंत चंचल माना गया है। इसी मन को सभी विचारों से रोक लेना ही ‘महा मौन’ है। केवल दिखावे के लिए मौन धारण करना तथा मन से विषय-वासनाओं का चिंतन करते रहना — यह वास्तविक मौन नहीं है, और न ही ऐसे आडंबरयुक्त मौन से कोई सिद्धि प्राप्त होती है। ऐसे मनुष्य के संदर्भ में गीता के तीसरे अध्याय में योगेश्वर श्रीकृष्ण ने स्पष्ट कहा है कि ऐसे लोग ‘मिथ्याचार’ हैं।

मनुष्य के अंतर्मन में निरंतर वृत्तियों का झंझावात चलता रहता है। मन का वृत्तियों से शून्य हो जाना ही यथार्थ मौन का लक्षण है। हठयोग में इसे ‘उनमनी भाव’ कहा गया है। योग-दर्शन में बताया गया है कि मौन से ही आंतरिक शक्तियों का जागरण होता है। मौन के द्वारा एकाग्रता तथा स्मरण शक्ति में वृद्धि होती है। इससे इच्छा-शक्ति तथा मनोबल अत्यंत प्रभावशाली बनता है। हमारे ग्रंथों में मौन को अनेक गुणों से युक्त कल्पवृक्ष माना गया है। इसे साधना के बीज का निर्माण करने वाला कहा गया है। मौन के साथ यदि निराहार उपवास किया जाए तो वह और अधिक प्रभावशाली होता है। मौन मनुष्य की आंतरिक चेतना को सात्विकता प्रदान करता है। मौन से गंभीर प्रश्न व सिद्धांत अंत:प्रेरणा से सहजता से हल हो जाते हैं।

बड़े-बड़े ऋषियो के बारे में देखा गया है कि वे अपने मन को एकाग्र कर योग द्वारा नए सिद्धांतों की खोज करते हैं। हिमालय की कंदराओं में शांतचित्त होकर बैठे साधक, इसी मौन की शक्ति से परमात्मा के आनंद की अनुभूति करते हैं। मौन की साधना से वाक्-सिद्धि की भी प्राप्ति होती है। मौन चिंता, तनाव तथा मानसिक अशांति को दूर कर मानसिक पटल को पवित्र बना देता है।

योगेश्वर श्रीकृष्ण ने भी मौन की महिमा बताते हुए गीता के दसवें अध्याय में कहा है कि मौन उनका प्रत्यक्ष ईश्वरीय रूप है। गीता के सत्रहवें अध्याय में भी मौन को मानसिक तप कहा गया है, अर्थात यह मौन-मन के माध्यम से किया जाने वाला पुरुषार्थ है। हमारे ग्रंथों में बताया गया है कि जल से शरीर की, विचार से मन की, दान देने से धन की, और सत्य बोलने से वाणी की जैसी शुद्धि होती है—उससे अधिक शुद्धि संपूर्ण शरीर की मौन-साधना से होती है।

यह पूर्णतः वैज्ञानिक है कि अत्यधिक और अर्थहीन वार्तालाप से हमारे शरीर की आंतरिक ऊर्जा की हानि होती है। इसी ऊर्जा को प्रत्येक व्यक्ति मौन के माध्यम से बचा सकता है तथा अपनी मानसिक भूमि को सात्विक बना सकता है।हम स्वयं, प्रतिदिन की जीवन-चर्या में, कुछ समय मौन रहकर अपनी आंतरिक शक्तियों को परिष्कृत कर सकते हैं और मौन की महिमा का अनुभव कर सकते हैं। ऋषि-मुनियों ने मौन को आनंद-प्राप्ति का प्रवेश-द्वार माना है। इससे चेतना की परतें खुल जाती हैं, जिससे साधक ध्यान की पराकाष्ठा को प्राप्त करता है।



ये भी पढ़ें
सीएम की घोषणा,कटंगी और पौड़ी बनेगी तहसील,लाड़ली बहना योजना सम्मेलन में शामिल हुए सीएम
...

Spiritual

See all →
Sanjay Purohit
सावन के अंतिम सोमवार पर करें शिव की विशेष आराधना, मिलेगी महादेव की कृपा
सावन का महीना अब समाप्ति की ओर बढ़ रहा है। हिंदू धर्म में सावन मास को भगवान शिव का अत्यंत प्रिय माना जाता है। पुराणों में भी सावन के महीने को बहुत महत्व दिया गया है। इस मास में आने वाले सोमवार विशेष फलदायी माने जाते हैं क्योंकि ये दिन भगवान शिव को समर्पित होते हैं।
80 views • 20 hours ago
Richa Gupta
नाग पंचमी आज, इस विधि से करें पूजा-अर्चना, मंत्र जाप, मिलेगा आशीर्वाद
सावन माह में पड़ने वाली नाग पंचमी का व्रत हिंदू धर्म में विशेष महत्व रखता है। नाग पंचमी श्रावण माह के शुक्ल पक्ष की पंचमी तिथि को मनाई जाती है।
65 views • 2025-07-29
Sanjay Purohit
सावन के सोमवार और शिवालय: आत्मा से शिव तक की यात्रा
सावन का महीना हिन्दू धर्म में विशेष महत्व रखता है। यह समय केवल मौसम की ठंडक और हरियाली का ही नहीं, बल्कि आत्मा की तपस्या और भक्ति की अग्नि में तपने का भी होता है। इस माह के सोमवार—जिन्हें 'सावन सोमवार' कहा जाता है—शिव भक्ति की चरम अवस्था माने जाते हैं।
82 views • 2025-07-28
Richa Gupta
सावन की चतुर्थी पर आज गणेश-शिव पूजन का महासंयोग, इस विधि से करें पिता-पुत्र की आराधना
हिंदू धर्म में हर व्रत और त्योहार का विशेष महत्व है। आज का दिन खास है, आज विनायक चतुर्थी का शुभ पर्व है। इस दिन लोग भगवान गणेश की कृपा पाने के लिए व्रत-पूजन करते हैं।
65 views • 2025-07-28
Sanjay Purohit
सनातन धर्म और नाग पंचमी: श्रद्धा, परंपरा और जीवों की रक्षा का उत्सव
सनातन धर्म की परंपराएँ केवल धार्मिक अनुष्ठान नहीं, बल्कि प्रकृति, जीव-जंतु, और समग्र सृष्टि के प्रति गहन संवेदनशीलता और सम्मान की जीवंत अभिव्यक्ति हैं। इन्हीं परंपराओं में एक विशिष्ट पर्व है नाग पंचमी, जो विशेष रूप से नागों की पूजा और उनके संरक्षण को समर्पित है।
35 views • 2025-07-27
Sanjay Purohit
इस बार कब है राखी का त्योहार, जानिए शुभ मुहूर्त और भद्रा का समय
भाई-बहन के पवित्र रिश्ते का पर्व रक्षाबंधन हर साल श्रावण मास की पूर्णिमा को मनाया जाता है। इस दिन बहनें अपने भाइयों की कलाई पर राखी बांधकर उनकी लंबी उम्र और सुख-समृद्धि की कामना करती हैं, वहीं भाई बहनों की रक्षा का संकल्प लेते हैं।
64 views • 2025-07-25
Sanjay Purohit
सावन, हरियाली और श्रृंगार — सनातन संस्कृति की त्रिवेणी
सावन मात्र एक ऋतु नहीं, बल्कि सनातन संस्कृति की आत्मा को छू लेने वाला एक आध्यात्मिक और सांस्कृतिक उत्सव है। यह वह कालखंड है जब आकाश से बूंदें नहीं, वरन् देवी-आशीर्वाद बरसते हैं। धरती माँ का आँचल हरियाली से सज जाता है और स्त्री का सौंदर्य, श्रृंगार और भावनात्मक गहराई अपने चरम पर पहुँचती है।
82 views • 2025-07-25
Sanjay Purohit
क्यों मानी जाती है भद्रा अशुभ? एक धार्मिक और खगोलीय विवेचना
भारतीय पंचांग और धार्मिक परंपराओं में समय का चयन अत्यंत महत्वपूर्ण माना गया है। शुभ कार्यों — जैसे विवाह, गृह प्रवेश, मुंडन, नामकरण या यज्ञ आदि — के लिए केवल दिन और तिथि ही नहीं, बल्कि "मुहूर्त", "नक्षत्र", "योग", और "करण" भी ध्यान में रखे जाते हैं। इन्हीं में से एक 'करण' है "भद्रा", जिसे विशेष रूप से अशुभ माना जाता है।
70 views • 2025-07-25
Sanjay Purohit
आदर्श पूजा घर कैसा हो? जानिए वास्तु और ज्योतिष के अनुसार जरूरी बातें
हर घर में एक स्थान ऐसा होना चाहिए जहाँ शांति, श्रद्धा और सकारात्मक ऊर्जा का वास हो। यही स्थान होता है — पूजा घर। लेकिन क्या आपने कभी सोचा है कि पूजा घर कहां और कैसे होना चाहिए ताकि उसमें भगवान की उपस्थिति के साथ-साथ सकारात्मक ऊर्जा भी सदा बनी रहे?
66 views • 2025-07-24
Richa Gupta
हरियाली अमावस्या पर क्यों की जाती है वृक्ष पूजा? जानें भगवान शिव-पार्वती से जुड़ी पौराणिक कथा
हरियाली अमावस्या, जिसे श्रावण अमावस्या भी कहा जाता है, सावन माह के बहुत ही पावन और ऊर्जा-समृद्ध कालखंड में आती है। इस दिन प्रकृति की आराधना, विशेष रूप से वृक्षों की पूजा का विशेष महत्व है।
75 views • 2025-07-24
...

IND Editorial

See all →
Sanjay Purohit
स्वतंत्रता या उच्छृंखलता: युवाओं के बदलते मानक
समाज की चेतना का सबसे सजीव रूप उसका युवा वर्ग होता है। युवाओं में ऊर्जा होती है, नवीनता की खोज होती है और साहस होता है सीमाओं को लांघने का। यही विशेषताएं किसी भी देश और समाज के भविष्य को गढ़ती हैं। लेकिन जब यही युवा दिशा और मूल्यों से कटकर केवल स्वतंत्रता के नाम पर स्वेच्छाचार की ओर बढ़ने लगे, तब यह चिंता का विषय बन जाता है।
20 views • 2025-07-27
Sanjay Purohit
सावन, हरियाली और श्रृंगार — सनातन संस्कृति की त्रिवेणी
सावन मात्र एक ऋतु नहीं, बल्कि सनातन संस्कृति की आत्मा को छू लेने वाला एक आध्यात्मिक और सांस्कृतिक उत्सव है। यह वह कालखंड है जब आकाश से बूंदें नहीं, वरन् देवी-आशीर्वाद बरसते हैं। धरती माँ का आँचल हरियाली से सज जाता है और स्त्री का सौंदर्य, श्रृंगार और भावनात्मक गहराई अपने चरम पर पहुँचती है।
82 views • 2025-07-25
Sanjay Purohit
जागरूक होता इंसान और सिसकती संवेदनाएँ
हम एक ऐसे दौर में प्रवेश कर चुके हैं जहाँ मनुष्य 'जागरूक' तो है, लेकिन भीतर से 'असंवेदनशील' होता जा रहा है। तकनीक, सूचना और वैज्ञानिक प्रगति ने उसके जीवन को सुविधाजनक अवश्य बना दिया है, परंतु इस यात्रा में उसने बहुत कुछ खोया भी है—खासतौर पर वह सहज मानवीय भावनाएँ जो किसी भी समाज को जीवंत बनाती हैं।
73 views • 2025-07-25
Sanjay Purohit
प्रेरणा – आत्मबल का जाग्रत स्रोत
प्रेरणा – यह एक ऐसा शब्द है, जिसमें सकारात्मकता का असीम बोध समाहित होता है। यह जीवन के सार्थक पहलुओं और उद्देश्यों की ओर निरंतर अग्रसर करती है। प्रेरणा, हमारे प्रयासों को ऊर्जा और सार्थक गति प्रदान करने में एक अदृश्य शक्ति के रूप में कार्य करती है, जो हर ठहराव में भी प्रवाह भर देती है।
76 views • 2025-07-23
Sanjay Purohit
बाजार संस्कृति में गुम होती खुशियां और मस्ती — क्या हम अपनी असली दुनिया भूल रहे हैं?
आज का दौर बाजारवाद और उपभोक्तावाद का है। हर व्यक्ति किसी न किसी रूप में ग्राहक बन गया है—कभी वस्त्रों का, कभी गैजेट्स का, कभी ऑनलाइन कंटेंट का। पर क्या आपने कभी रुककर सोचा है कि इस भागती-दौड़ती बाजार संस्कृति में हम अपनी असली खुशियों और मस्ती को कहीं खो तो नहीं बैठे हैं?
101 views • 2025-07-17
Sanjay Purohit
श्रावण मास में रुद्राभिषेक का विशेष महत्व: भगवान शिव की कृपा और शांति प्राप्ति का सर्वोत्तम साधन
हिंदू धर्म में श्रावण मास को भगवान शिव का प्रिय महीना माना गया है। इस मास में विशेष रूप से सोमवार के दिन भक्तगण उपवास रखते हैं, जलाभिषेक करते हैं और रुद्राभिषेक के द्वारा भगवान शिव की कृपा प्राप्त करने का प्रयास करते हैं। रुद्राभिषेक केवल धार्मिक कर्मकांड नहीं है, बल्कि यह आध्यात्मिक ऊर्जा जागरण, मानसिक शांति और जीवन में संतुलन लाने का एक सशक्त साधन है।
103 views • 2025-07-16
Sanjay Purohit
सृजन और सावन: प्रकृति, अध्यात्म और जीवन का गहरा संबंध
भारतीय संस्कृति में सावन केवल वर्षा ऋतु भर नहीं है, बल्कि यह जीवन, सृजन और नवचेतना का प्रतीक भी माना गया है। जब आकाश से बरसात की बूंदें धरती पर गिरती हैं, तो मिट्टी की भीनी खुशबू हर दिशा में फैल जाती है और चारों ओर हरियाली बिखर जाती है। हरे-भरे वृक्ष, खिलते पुष्प, और लहराते खेत—सभी जैसे नवजीवन से भर उठते हैं। यह माह पर्यावरण, अध्यात्म और मानवीय भावनाओं में गहरा तालमेल स्थापित करता है।
110 views • 2025-07-15
Sanjay Purohit
ध्रुव तारे की खोज: संतत्व के संकट पर आत्ममंथन
भारतीय जनमानस में संतों का स्थान अनादिकाल से अत्यंत विशेष रहा है। उन्हें केवल धर्मगुरु नहीं, बल्कि ईश्वरतुल्य मान्यता प्राप्त रही। संतों ने समय-समय पर समाज को दिशा दी और जब भी राष्ट्र पर संकट आया, अपने प्राणों की आहुति देने में भी वे पीछे नहीं हटे। संत का व्यक्तित्व उस विराट मौन सरिता की तरह है, जो निरंतर जीवन और जीव को पोषित करती है, स्वयं किसी सत्ता या प्रसिद्धि की इच्छा नहीं रखती।
106 views • 2025-07-11
Sanjay Purohit
शिव और सावन: सनातन धर्म में आत्मा और ब्रह्म का अभिन्न संगम
भारतीय सनातन परंपरा में शिव केवल एक देवता नहीं, बल्कि सम्पूर्ण ब्रह्मांडीय चेतना के प्रतीक हैं। उन्हीं शिव से जुड़ा सावन मास, साधना, भक्ति और तात्त्विक चिंतन का विशेष समय माना जाता है। यह महीना जहां प्रकृति के जल चक्र से जुड़ा है, वहीं आत्मा और परमात्मा के गूढ़ संबंध को भी उद्घाटित करता है।
129 views • 2025-07-11
Sanjay Purohit
भाषा को बंधन नहीं, सेतु बनाए – संघीय ढांचे की आत्मा को समझे
भारत विविधताओं का अद्भुत संगम है—यहां हर कुछ किलोमीटर पर बोली, संस्कृति और रहन-सहन बदल जाता है। इस विविधता के बीच "भाषा" केवल संवाद का माध्यम नहीं, बल्कि पहचान, स्वाभिमान और संवैधानिक अधिकारों का प्रतीक बन चुकी है। लेकिन जब भाषा को "राष्ट्रवाद" के चश्मे से देखा जाता है और किसी एक भाषा को अन्य पर वरीयता देने की कोशिश होती है, तब यह लोकतंत्र की आत्मा—संघीय ढांचे—को चुनौती देती है।
91 views • 2025-07-08
...